
महर्षि दधीचि की देह इतनी मजबूत कैसे जाने इसकी पीछे की कथा
दधीचि द्वारा अस्थियो का दान – देवलोक पे व्रतासुर राक्षस के हथियया चार दिन प्रति दिन बढ़ते ही जा रहे थे वह देवताओ को भाँति भाँति से परेशान कर रहा था अन्तत देवराज इंद्र को देवलोक की रक्षा
और देवताओ की भलाई के लिए और अपने सिंघासन को बचाने के लिए देवताओ सहित महऋषि दधीचि की शरण में जाना ही पढ़ा महऋषि दधीचि ने इंद्र को पूरा सम्मान दिया तथा आश्रम आने का कारण पूछा इंद्र ने दधीचि को अपनी व्यथा सुनाई तो दधीचि ने कहा की में देवलोक की रक्षा के लिए क्या कर सकता हूँ देवताओ ने ब्रम्हा विष्णु और महेश की कही हुई बाते बताई तथा उनकी अस्थियो का दान माँगा महऋषि दधीचि ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी अस्थियो का दान देना स्वीकार कर लिया , उन्होंने समाधि लगाई और अपनी देह त्याग दी उस समय उनकी पत्नी आश्रम में नहीं थी अब देवताओ के समक्ष यह समस्या आई की महऋषि दधीचि के शरीर का मॉस कोण उतारे इस कार्य के ध्यान में आते ही सभी देवता सहम गए तब इंद्र ने कामधेनु गाय को बुलाया और उसको महऋषि दधीचि के शरीर का मॉस उतारने को कहाँ कामधेनु ने अपनी जीभ से चाट चाटकर महऋषि दधीचि के शरीर का मॉस उतार दिया अब केवल अस्थियो का पिंजर रह गया !
गभस्तिनि की जिद्द – महऋषि दधीचि ने तो अपनी देह देवताओ कि भलाई के लिए त्याग दी , लेकिन जब उनकी पत्नी गभस्तिनि वापस आश्रम में आई तो अपने पति की देह को देखकर विलाप करने लगी तथा सती होने की जिद्द करने लगी तब देवताओ ने उन्हें काफी मना किया क्योकि वो गर्भवती थी देवताओ ने उन्हें अपने वंश के लिए सती होने की सलाह दी लेकिन गभस्तिनि नहीं मानी तब सभी ने उन्हेंअपने गर्भ को देवताओ को सौपने का निवेदन किया इस पर गभस्तिनि राजी हो गयी और अपना गर्भ देवताओ को सौपकर स्वयं सती हो गयी देवताओ ने गभस्तिनि को गर्भ बचाने के लिए पीपल को उसका लालन पालन करने का दायत्व सौप दिया कुछ समय बाद वह गर्भ पलकर शिशु हुआ तो पीपल द्वारा पालन पोषण करने के कारण उसका नाम पिप्लाद रखा गया इसी कारण दधीचि के वंसज ” दाधीच ” कह लाए!